कुदरत में नर का नारी के लिए लड़ाई करना एक नैसर्गिक प्रक्रिया है। कभी ओशो ने कहा था की लोग नारी को संपत्ति या कीमती सामान क्यों समझते हैं? शर्म आनी चाहिए लोगो कि लोग कन्यादान या नारी को वधू स्वरूप समझकर उसकी अहमियत किसी भी कुल खानदान में एक बहुमूल्य संपत्ति की तरह आंकते हैं ।यह निर्विवाद कुदरत का सिद्धांत है। चाहे आप किसी भी स्पीशीज प्रजाति या योनि को देख लो सभी जगह एक नारी स्वरूप को पाने के लिए संघर्ष करते है ।हर प्रकार के जीव जंतु पहले अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं ।चाहे वह बल से हो या छल से हो ,किसी भी प्रकार से वह अपने विरोधी को हराना पसंद करते हैं ,ताकि वह उसे क्षेत्र पर उस के अधीन नारी पर अपना आधिपत्य छोड़ दे और फिर वो बहु पत्नी गामी पुरुष की तरह शान सेअपने वंश की वृद्धि कर सके और यह बता सके कि वहां का किंग ,सरदार, सर्वे सर्वा वही है ।आश्चर्य का विषय है कि हिंसक पशु से लेकर अहिंसक प्राणी तक सभी इसी व्यवस्था में जीते हैं ।चाहे वह जलचर हो नभचर हो अथवा उभयचर हो । सब की तासीर और संस्कृति एक ही रहती है ।कुदरत के बने हुए इस धनात्मक और धनात्मक ध्रुव के मिलन से ही परिपथ पूरा होता है सृजन होता है ,और इस विश्व को उस प्रजाति या योनि का नया सदस्य मिलता है। जो इसी प्रकार सृष्टि को बढ़ाते रहते हैं। ऐसे समय अपने अधिकार और शक्ति प्रदर्शन के बाद जीते हुए साम्राज्य संपत्ति अथवा नारी को यदि लोगअपनी संपत्ति की तरह व्यवहार करते हैं तो इसे सृष्टि का नियम मानना चाहिए। ज्यों ज्यों शिक्षा का विकास होता गया लोग सभ्य होते गए। बुद्धि विवेक और चतुराई से जीवन में आगे बढ़ते गए स्वयं को समृद्ध पैसे के रूप में बनाते गए ।नियम कायदा कानून के तहत समाज में उच्च और निम्न वर्ग का निर्माण करते गए। वही नारी को संपत्ति समझने का स्वरूप नहीं बदला ।लोग धनाट्य और पैसे वाले होने के बाद अच्छे से अच्छे नैन नक्श गोरे चिट्टे प्रजाति को अपने वंश को बढ़ाने के लिए नारी को संपत्ति के स्वरूप में उपयोग करते रहे ,लोगों को नजराना प्रस्तुत करते रहे या अपनी शान में ,चयन करके लोगों से मनुहार करके उसके बदले में उचित दान दक्षिणा देकर लेकर अपने जीवन को आगे बढ़ते रहे। मौजूदा वीडियो में भी इसी प्रकार के जीव जंतुओं का जो मनुष्य योनि से सर्वथा अलग है विवेकहीन है उनकी आधिपत्य को बनाए रखने के लिए आपस में लड़ते हुए देखना सत्य है कि…
जर और जोरू जोर की
जोर घटे तो और की