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सातों दिन खाना बनाते बनाते हैं थक जाती है महिलाएं। एक दिन का रेस्ट सी ऑफ मांगती है और जब वह अवकाश मांगती है तो उसको रिलीव करने वाला न्यूक्लियर फैमिली में कोई नहीं होता। ज्वाइंट फैमिली अब होती नहीं।मैं और मेरा छोटा सा परिवार होता है।आखिर खाना जब वह बनाती है तो वह खुद भी खाती है ।परिवार को चलाने के लिए और जिस दिन वह टूल डाउन कर देती है, श्रमिक एक्ट की तरह सप्ताह में एक दिन फंडामेंटल लीव मांगती है ।उस दिन चूल्हा नहीं जलता और फिर मजबूरन चाहे सात्विक धर्म को मानने वाला परिवार हो आदमी हो या सात्विक तड़क भड़क पसंद परिवार हो ,सभी आजकल बाहर बाजार का खाने के लिए निकलने लगे हैं। और फूड इंडस्ट्री चल पड़ी है ।नमक समक नमक समक डाल देते हैं…. डाल देते हैं के तरबन तड़का तर्ज पर पकौड़े से लेकर चाऊमीन मोमोज और भी न जाने कई निरामिष भोजन की श्रृंखलाएं दिशा में उल्लेख करना उचित नहीं समझता ।आजकल 95% परिवार हर शहर का, बाजार में नजर आता है रविवार को । रोज के आलू टिक्की चाट पकोड़े तो वैसे भी ऑफिस में काम करने वालो के चलते ही रहते हैं। जिसमें प्याज, लहसुन, मक्खी, धूल , धक्कड़ का समावेश तो रहता ही है ।फिर बनाने वाला इतनी शिद्दत से काम जब करता है तब उसका पसीना या खुजली मायने नहीं रखता। कुल मिलाकर घर के बाहर का खाना नहा धोकर बनाया गया हो साफ शुद्ध बनाया गया हो या शुद्धता के मानकों पर खड़ा उतर रहा हो इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता । पूज्य गुरुदेव के अनुसार बाहर खाना ही वर्जित है ।अगर ईश्वर भजन करना है जब तप करना है कुछ आध्यात्मिक शक्ति एकत्र करना हैओजस्वी बनना है तो ऐसे ही खान-पान को तिलांजलि ही देना होगा ।यह सोच घर के लोगों को महिलाओं को रिश्तेदारों को और समाज को बहुत ही पुरातन लगता है पिछड़े और निम्न सोच स्तर के व्यक्ति की कल्पना करते हैं लोग।इस प्रकार भौतिकता के युग में आगे बढ़ रहे लोग यदि प्रेमानंद महाराज की यह सब बातें सुनते हैं तो यह जरूर कहते हैं की प्रेमानंद महाराज का आध्यात्मिक उत्थान और अन्य बाजारु गुरुओं के उपदेश से बहुत भिन्न है। कम से कम ओशो के ज्ञान से तो बहुत ही विपरीत महसूस होता है ।पर कल्पना कर सकते हैं की सहज जीवन जीने में और जीवन के हर प्रकार के स्वाद का आनंद लेने में जो कुछ उपलब्ध हो जाता है वह हठयोगी और विशेष प्रकार के जब तप करने वाले मार्ग से ज्यादा बेहतर होता है ।इस बारे में कोई दुविधा या द्वंद्व नहीं है। जैसा-जैसा जिसका जिसका अपना-अपना विचार हो लोगों को पूरा करते रहना चाहिए।
- नहाए धोए क्या भया जो मन मैल न जाए
मीन सदा जल में रहे धोये बास न जाए