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नियत साफ होनी चाहिए

नियत साफ होनी चाहिए

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नियत साफ होनी चाहिए ,सोच अच्छी होनी चाहिए। कर्म भगवान के नाम पर लोगों का भला करने की होनी चाहिए। भगवान भी उन्हें पसंद करते हैं जो उनके बनाए हुए उनके पुत्रों उनके जीव उनके जगत के प्राणियों को पूछते हैं, पूजा करते हैं पालते हैं ,आदर करते हैं और यथाशक्ति सेवा करते हैं। इस वीडियो में जो बात बताई गई है वह अनुकरण करने के लायक है। अधिकतर व्यापारी अपने व्यापार की शुरुआत बोहनी आदि से करते हैं। मेरी जानकारी में यह बोहनी शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई मुझे अभी तक पता नहीं चला है। संभवत यह किसान की बोनी या बुवाई से संबंधित हो सकता है। व्यक्ति जब अपने खेत की बुवाई सही समय पर करता है चींटी, कीड़े मकोड़े और कई प्रकार के बैक्टीरिया जो भगवान की देन है ।उनकी मदद लेते हुए उन पर विश्वास करते हुए जब अन्न के दाने फेंकता है तो उसमें से अगर 60% अन्न यदि रिटर्न पैदा होकर मिल जाए और 40% अन्य उन जीवों के भोजन में लग जाए तो भी भगवान उसे धन-धान्य से परिपूर्ण कर देता है ।इसी शब्द से शायद बोहनी की उत्पत्ति हुई है ।जिसे हर व्यापारी बहुत संजीदगी और गंभीरता से लेता है। इसलिए वह हर दिन अपने बिजनेस की शुरुआत जिस ग्राहक के साथ करता है उसके साथ वह बहुत ज्यादा मोलभाव नहीं करता और उसे खुश करते हुए उसके मनपसंद दाम पर वह सामान उसे बेच देता है ।या कोशिश करता है कि उसे किसी तरीके से खुश करते हुए अपना व्यापार का शुरुआत कर सके ।अब इसे अलग-अलग तरीके से हर व्यापारी लेते हैं कोई अपना सामग्री या प्रोडक्ट हो भगवान के मंदिर में अर्पित कर देता है तो कोई रोज इसका थोड़ा अंश निकालकर भगवान के चरणों में रखकर भोग लगाया समझकर बाद में उसे खुद ग्रहण करता है। या किसी पशु-पक्षी भिखारी या जरूरतमंद को दे देता है। पर आस्था उसकी यही रहती है कि वह उसे सर्वशक्तिमान भगवान को अपने प्रथम डील को अर्पित करते हुए उसे खुश रखने का प्रयास करता है ताकि सारे प्रकार की ऐश्वर्यऔर मनोकामनाओं के केंद्र सर्वशक्तिमान भगवान से उसे सहज प्राप्त हो सके।

कहते हैं कर भला तो हो भला ।जिसकी ईमानदारी लगन नियत और लक्ष्य महान होते हैं उन्हें तरक्की करने से कोई नहीं रोक सकता ।चाहे वह किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहा हो ,या खेती कर रहा हो, नौकरी कर रहा हो या व्यापार कर रहा हो। प्रत्येक जीव में बसे परमात्मा के स्वरूप में व्यक्ति ,स्थान उस व्यक्ति की महिमा की जय जयकार करने लगते हैं और वह हजार मनको में हीरे की तरह स्वयं चमकता है ।उन्नति को प्राप्त करता है ,मानसिक शांति को प्राप्त करता है ।उसकी सर्वांगीण विकास होती है। वह किसी प्रकार के प्रपंच में नहीं फसता। उसे सर्वशक्तिमान की आराधना करने के लिए मंदिर मस्जिद जाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि कर्म ही पूजा है ।जिसे वह सतत भागवत तुल्य मानकर उस व्यापार या कर्म से जुड़े सभी लोगों को प्रसन्न रखने का प्रयास करता है। यही धनी-मानी और बड़े सफल लोगों के आगे बढ़ने की वजह है।

 

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