छोटी सी दुनिया, छोटी सी जिंदगी में बहुत सारी उपलब्धियां अर्जित करना सामान्य इंसान के बस की बात नहीं है ।हमारे पृथ्वी जैसी ग्रह आकाशगंगा में तारामंडल और ग्रह के समूहों गैलेक्सी में और भी है। जहां हम सशरीर जा ही नहीं पाते पहचान ही नहीं पाते कि वहां भी कोई विज्ञान और इस प्रकार का जीवन है ।अनेक विचारक ,धर्म विशेषज्ञ ,धर्माचार्य थे जो इस जहां में जिनकी बातें केवल सर्वशक्तिमान सत्ता ही जाने की भगवान गॉड खुदा की अतिरिक्त और कहीं कुछ हो सकता है ।वही ओशो के विश्लेषण और ज्ञान हमें इस बात को सोचने के लिए मजबूर करती हैं की वास्तव में पश्चिम का मेडिकल साइंस अभी तक जो कहता है की मानने से पहले जानना जरूरी है और जानने के लिए उसे पर तर्क रिसर्च शोध की आवश्यकता होती है ।यहां ओशो स्वयं अपनी धारणाओं को झूठला रहे हैं की किसी भी चीज को मानने से पहले जानना सीखो ।वह स्वयं बता रहे हैं कि सर्पगंधा जैसे पौधों से निकाला गया एक्सट्रैक्ट या अर्क बीमार लोगों को ट्रेंकुलाइज करने के लिए नींद की दवा बना कर उनके रोगों को दूर करने के लिए आदिकाल से हमारे यहां हमारे ऋषि मुनि मनुष्यों द्वारा उपनिषदों में वर्णित है । किंतु यह कैसे काम करता है उसको सिद्ध करने के लिए कोई भी लैबोरेट्री या शोधशाला नहीं है ।फिर भी हम अपने इनट्यूशन और परा विज्ञान के माध्यम से पौधों से ही उसके बारे में विशेषज्ञ उनसे बातचीत करते हुए हासिल करते हैं और फिर उसे बात को प्रमाणित करने के लिए पीड़ित व्यक्तियों पर आजमा कर सिद्ध कर देते थे कि हां यह काम करता है ।जरा सोचिए हकीम लुकमान ,चरक ,सुश्रुत महान शल्य चिकित्सक, हकीम और वैद्य अपनी इस 100 साल की जीवन में कई लाख औषधीय पर कैसे अपना ज्ञान शोध सहित अर्जित किए होंगे?
लेखन का तात्पर्य केवल इतना है कि
“जहां न पहुंचे रवि ,वहां पहुंचे कवि
और जहां न पहुंचे कवि वहां पहुंचे अनुभवी “
हमारे विज्ञान में ध्यान और समाधि के बाद पर अलौकिक दुनिया की शक्तियां जो स्वयं हमें आकर बताती हैं की हमारी पुरानी उपलब्धियां क्या थी और हम कहां तक पहुंच चुके थे ?रामानुजन का गणित का सिद्धांत अल्प आयु में अल्प शिक्षित होते हुए भी वह निस्णात गणितज्ञ लोगों को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देते थे। स्वयं ओशो ने हीं अपनी प्रवचनों में बताया है ।ठीक इसी प्रकार हकीम लुकमान और हमारे मनीषियों द्वारा शोध किया गया आयुर्वेद का वह दर्शन भारत की इंटेलेक्चुअल और इनट्यूशन में सिद्ध लोगों की ही देन है ।जो आज पश्चिम हमें सिद्ध करके बताने को कहता है। वहां हम असफल हो जाते हैं ।शायद रामदेव का पतंजलि रिसर्च इस दिशा में कुछ आगे कर जाए तो भारत में आयुर्वेद की महान विद्याएं पुन स्थापित हो सके ।आचार्य भगवान रजनीश का इस दिशा में अपना उपदेश देना हमारे लिए सोने में सुहागा की तरह है ।जो लोग रजनीश को सिर्फ सेक्स गुरु के नाम से जानना समझना चाहते हैं उनके लिए यह विशेष कौतुक का विषय हो सकता है।