यह घटना ओशो के स्वयं अपने जवानी के समय की है जिस समय ओशो के पिताजी को उनके वकील मित्र द्वारा आम जीवन में होने वाली समान्य घटना के तहत अपने जवान पुत्र को शादी के बंधन में बांधने के लिए किया जानें वाला प्रयास था। उनके वकील मित्र द्वारा समझाइस भेजी गई की ओशो सही समय पर शादी कर ले परंतु ओशो तो ओशो थे ।
इस पृथ्वी की सबसे बड़ी वकील जिनका तर्क में दूर-दूर तक कोई प्रतिद्वंदी ही नहीं था। सुबह अगर वह किसी को उठाना चाहे तो उसके तारीफ के कसीदे गढ़ दें और शाम को अगर उन्हें ही पटकना हो तो फिर उसे ऐसी जगह पटके जहां वह पानी भी ना मांग सके।उनका जीवन और मकसद लोगों को सिखाना था । स्वयं सीख तो वह बहुत सारी चीज पहले से ही गए थे ।इसलिए उन्होंने ठान लिया कि कैसे लोगों तक अपने ही संदेश को पहुंचना है की शादी करने के उपरांत आम मानव क्या से क्या हो जाता है ।यदि आप खास हो तो आपकी जीवन का मकसद पहले से ही तय हो जाता है की आप कहां जाना चाहते हैं आपकी मंजिल कहां है? जैसी बड़े-बड़े साधु सन्यासी ऋषि मुनि लोग परंतु नदी के अन्दर बहने वाले पत्थर ,जैसे आम जीवन को जीने वाले आत्माएं ,शादी करने के बाद बहुत सारे माया मोह के चक्कर में फंस जाते है और 99 के फेर में ,दो पाटन के बीच में पिसते रहते है। कल्पना करें अगर ओशो के पत्नी और बच्चे आज होते तो वह भी सामान्य आध्यात्मिक गुरुओं के परिवार की तरह लोगों के दान दक्षिणा और रहमो करम पर जीवित होते और उनकी बनाई हुई संपत्ति का उपभोग करते हुए किसी मठ के पीठाससीन कस्टोडियन होते। जिसमें उन्हें अनावश्यक अपयस आदि मिलता होता और ओशो के औलाद पुत्र से हम यह आशा करते कि वह अपने पिता से भी एक कदम आगे बढ़कर निकले। ताकि उनका यह कम्यून और आश्रम और आश्रम की तरह और गुरु शिष्य परंपरा की तरह फलता फूलता रहे। जिससे आम जीवन, संप्रदाय ,धर्म ,आश्रम के पतन की तरह उनका भी हस्र हम अपने आंखों के सामने देखते रहते ,जो हो ना सका ।क्योंकि ओशो जिस उद्देश्य से इस पृथ्वी पर आए थे वह बिना शादी विवाह के भी पूर्ण हो सकता था ऐसा उनका आत्मविश्वास था ,और अंग्रेजी भाषा ,विदेशी भाषा पर उनकी विशेष पकड़ होने के कारण उन्होंने इस बात को साबित करने के लिए अमिर विदेशियों को ही सबसे पहले चुनाव किया । जिसमें वह सफल भी हुए और इस प्रकार जो चीज देश के बाहर सफल हो जाती है उसे अपने घर में वापस लाकर सफल मार्केटिंग करना कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं रह जाती है । कल्पना करें अगर ओशो भी केवल हिंदी संस्कृत और लोकल भाषा का ही ज्ञान रख पाते, भाषा के जानकार और विद्वान नहीं होते तो क्या पूरे जग में उसकी तूती बोल पाती , कदापि नहीं ।ओशो का यह कहना और मानना की शादी जीवन में आवश्यक नहीं है
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाई
जे खाए ते बौराए ना खाए खाए ते बौराए
पर समाप्त होती है।
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