दिया तले अंधेरा यह तो कहावत मशहूर है ।भारत की सनातन धर्म में समर्थ और विद्वान पुजारी वर्ग ने जो स्वयं को भगवान का वाहक प्रणेता और माध्यम बताने वाला, गुरु तुल्य समझे जाने वाला वर्ग।भारत के कई कोने में इस प्रकार की शोषण और दुराचरण करते हुए लोगों में हिंदू धर्म के प्रति घृणित छाप छोड़ गया होगा जिसके कारण वर्ण व्यवस्था भी बहुत फलित हुई परंतु देह का भोग करने के लिए इन लोगों में इस प्रकार की उच्च ,नीच ,छोटी जाति अथवा अन्य किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया ।केवल सुडौल और आकर्षक देह काया वाली नई नवेली दुल्हन दिल्ली और उन्होंने अपना स्वार्थ भगवान का प्रसाद बता कर पूरा किया। इन तथाकथित पंडित के पुजारी के द्वारा नारियों की शोषण के लिए एक भ्रमित नाम देवदासी का सृजन किया गया और जिस प्रकार आज भी बड़े-बड़े मंदिरों में भगवान को छप्पन भोग लगाने की आड़ में केवल भावना दी जाती है की सभी भोजन और सार तत्व भगवान को अर्पित करने के बाद यह प्रसाद पुजारी के और उनके परिवार के उदर में पहले जाता रहा । उसके बाद तृप्त होने के बाद बचा खुचा हिस्सा प्रसाद के रूप में भक्तों को बांट दिया जाता रहा ।आज भी बड़े-बड़े मठ मंदिर में इसी प्रकार पण्डो का बोलबाला है ।56 भोग के बाद 57 वा भोग किसी भी नव विवाहिता जोड़े की सुंदर या सुडोल कमनीय नारी को भगवान के भोग लगाने के वास्ते और उनके वंश को दूधो नहाओ पुतो फलों की आशीर्वाद दिलवाने के बहाने अपने वहशीपन से जिस प्रकार भोग करते आए और भगवान के नाम पर खुद भोग करने की कामना रखते हुए देवदासी बनाने की परंपरा को जीवित रखने के लिए अपने कामवासना की पूर्ति के लिए किसी भी गरीब घर की लड़की को जीवन भर के लिए मंदिर में देवदासी का काम करने के लिए रखा जाता रहा। मत पूछिए कि वह देवदासी पत्थर की भगवान की पूजन के बाद रात में उसे मंदिर में भगवान की सेवारत पंडित और उनके बृंद समुदाय के लिए सभी प्रकार की काम इच्छाओं की पूर्ति करती रहती रही थी ।यही तो हिंदी धर्म के मुख्य विनाश का कारण है। कमल के नीचे कीचड़ रहने के मंदिर जैसे पावन स्थली को दिखाकर उसके अंदर जिस प्रकार का निंदनीय कृत्य कुछ सनातन धर्म को गलत तरीके से बदनाम करने वाले लोगों द्वारा किया गया ,जिसका भांडा फूटने के बाद इस प्रकार की नारकीय जिंदगी जीने वाली देवदासियों को मुक्ति मिल सकी। ऐसे अंग्रेज प्रशासन के लोगों का सनातन धर्म को बदनाम होने से बचाने में बहुत मुख्य भूमिका मानी जाएगी ।ओशो जैसे स्वतंत्र विचारक लोगों के द्वारा इस प्रकार के आडंबर करने वाले लोगों को जिस प्रकार खुले बाजार जलील किया गया है वह पहले किसी को करने का साहस नहीं आया था ।सभी आम्रपाली की नगरवधू की तरह मंदिर के छोटे बड़े से लेकर प्रधान से लेकर छोटे पुजारी तक उनके ओहदे के अनुसार भोग किये होंगे।यह कृत्य नकल के रूप में आज भी बिहार और उत्तर प्रदेश के सम्राट ठाकुर समाज के दबंग लोगों द्वारा गरीब और छोटे समाज के लोगों पर बहू नव विवाहिता बहू के साथ कई दशकों तक किया जाता रहा था ।हमेशा समुद्र के जीवन की तरह ,जंगल के जीवन की तरह ,बड़े लोगों द्वारा गरीब दलित और छोटो पर अन्याय और आतंक का मंजर रहा होगा।