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क्या फिल्मी एक्टर मुकेश तिवारी सागर वाले कंगाल थे?

क्या फिल्मी एक्टर मुकेश तिवारी सागर वाले कंगाल थे?

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90 के दशक में बड़े परदे पर एक ऐसे दमदार ऐक्टर की एंट्री हुई जिसने ढेरों दिग्गज़ ऐक्टर्स की मौजूदगी के बावज़ूद, न सिर्फ बतौर विलेन अपनी एक छाप छोड़ी बल्कि दर्शकों के दिलों में एक ख़ौफ़ पैदा करने में भी कामयाबी हासिल की, और उस ऐक्टर का नाम है मुकेश तिवारी। अपनी पहली ही फिल्म ‘चाइनागेट’ में निभाये अपने क़िरदार डाकू जगीरा को मुकेश तिवारी ने कुछ इस तरह जीवंत किया कि उस क़िरदार के साथ-साथ औसत रूप से सफल होने के बावज़ूद यह फिल्म भी यादगार बन गयी।

 

दोस्तों मुकेश को जब चाइनागेट के लिये बुलाया गया था तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ था, उन्हें लगा कि कोई उनके साथ मस्ती कर रहा है। 5 दिनों बाद फिर से किसी ने उन्हें बताया कि नसीरुद्दीन शाह तुमसे बात करना चाहते हैं। दरअसल मुकेश को एनएसडी के दौरान नसीरुद्दीन शाह ने ट्रेनिंग दी थी, उनका नाम सुनते ही मुकेश भागे-भागे पोसीओ पहुँचे और नसीरुद्दीन शाह को फोन लगाया तो नसीरुद्दीन शाह मुकेश पर ख़ूब चिल्लाये और कहा “5 दिन से मैं तुम्हारे फोटोज़ का वेट कर रहा हूँ लेकिन तुम्हारा कुछ पता ही नहीं है।” फिर उन्होंने चाइनागेट फिल्म के बारे में बताया। मुकेश ने फौरन अपनी तस्वीरें कूरियर कर दी और कुछ दिनों के बाद अचानक फोन आया कि अगले दिन ही उन्हें मुंबई पहुँचना है। अब मुकेश के सामने एक अलग समस्या खड़ी हो गयी थी और वो थी पैसों की समस्या, क्योंकि इतनी जल्दी दिल्ली से मुंबई सिर्फ़ फ्लाइट से पहुँचा जा सकता था जिसमें 4500 का खर्चा था। ऐसे में उनकी मदद की, एनएसडी में ही चौकीदार का काम करने वाले उनके दोस्त सतवीर ने। उन्होंने फौरन बैंक (Bank) जाकर 5000 रुपये निकाले और मुकेश के हाथों में रख दिया। मुकेश ने कहा कि लेकिन मैं ये पैसे कैसे लौटाउंगा क्योंकि मेरी पेमेंट तो बस 3500 ही है। तब सतवीर ने कहा कि “कोई बात नहीं आधा-आधा करके अपने पेमेंट में से लौटा देना।”.

ख़ैर अगले दिन मुकेश मुंबई पहुँच गये और अपना ऑडिशन दिया। दोस्तों मुकेश को अपने ऑडिशन को लेकर इस बात का डर था कि उनके द्वारा बोला गया संवाद जो कि हिंदी के क्लिष्ट शब्दों में था पता नहीं ऑडिशन में किसी को समझ में आयेगा भी या नहीं। लेकिन उनकी ऐक्टिंग और संवाद अदायगी पर ख़ूब जमकर तालियाँ बजी और मुकेश को 20,000 साइनिंग अमाउंट के साथ डाकू जगीरा के रोल के साइन कर लिया गया।

इस रोल के लिये सेलेक्ट हो जाने के बाद मुकेश ने फिल्म के डायरेक्टर राजकुमार संतोषी से इसकी तैयारी के लिये थोड़ा वक़्त माँगा। मुकेश बताते हैं कि उस वक़्त उन्होंने अपना वजन बढ़ाने के साथ-साथ ख़ुद से नफ़रत करवाने के लिये कई महीनों न बाल कटवाये न दाढ़ी बनायी यहाँ तक कई दिनों तक वे नहाये तक नहीं, ताकि वे उस रोल को जीवंत कर सकें। वर्ष 1998 में रिलीज़ हुई इस फिल्म से लोगों के दिलों में दहशत मचाने वाले मुकेश को अपने इस रोल के कई अवाॅर्ड्स मिले। हालांकि मुकेश बताते हैं कि फिल्म फेयर के अवाॅर्ड के लिये जिससे उन्हें बहुत उम्मीद थी और उसके लिये उन्होंने नया सूट भी सिलवाया था लेकिन वो अवाॅर्ड उन्हें नहीं मिला। दरअसल उस साल मुकाबला भी बहुत काँटे का था और बेस्ट विलेन का यह अवॉर्ड उन्हीं के बैच के एनएसडी के उनके साथी आशुतोष राणा के हिस्से में फिल्म दुश्मन के लिये मिल गया।

आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि चाइनागेट में इतनी तारीफ़ पाने के बाद भी मुकेश को कई महीनों (Months) तक कोई काम नहीं मिला। इस बात से वे बड़े हैरान थे कि इतने पॉपुलर होने के बाद भी उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है तब एक दिन उन्हें यह रियलाइज़ हुआ कि दरअसल लोग उन्हें तो पहचानते ही नहीं है वे तो उनके जगीरा के क़िरदार को पहचानते हैं जिसका लुक ओरिजिनल में उनसे बहुत ही अलग है। मुकेश ने फौरन 20 डायरेक्टर्स की लिस्ट बनायी और सबसे मिलना शुरू कर दिया। 2 महीने के भीतर ही मुकेश के हाथों अब कुल 18 फिल्में थी।

मुकेश हिंदी के अलावा तमिल , तेलुगु और पंजाबी भाषाओं में कुल 200 के लगभग फिल्मों में काम किया है जो अभी भी ज़ारी है। मुकेश पापुलर सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में भी नज़र आ चुके हैं, जिसे दर्शकों ने इतना पसंद किया था कि उन्हें ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ में काम करने का भी ऑफर मिला। हालांकि उन्होंने यब कहकर ठुकरा दिया कि “ऐक ऐक्टर होने के नाते मैं हर तरह के रोल्स करता हूँ जिसमें कॉमेडी भी शामिल है, लेकिन मैं कोई कॉमेडियन नहीं हूं।”

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माना की फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मों को हिट करने के लिए मसाला डाला जाता है परंतु रियल लाइफ के स्क्रिप्ट में भी अपने नायक को विक्टिम बनाने के लिए लोग जानबूझकर उसे फटीचर से फाइटर बनाने के लिए न जाने क्या-क्या बातें लिखते बताते हैं कि उनके पास खाने को पैसे नहीं थे, बंबई जाने को पैसे नहीं थे ,सूट सिलवाने को पैसे नहीं थे और फिर वह बाद में हिट पर हिट होते गए। इस प्रकार समान्य लोगों को ये उत्तेजित करते हैं कि सामान्य जीवन से उठकर हर आदमी इस प्रकार का संघर्ष कर सकता है। यह प्रकार से गरीबों के जज्बात से खेलने वाला संदेश गलत है ।बाहर की दुनिया केवल पैसे, कौड़ी और ज्ञान ,प्रतिभा, संपर्क आदि से चलती है ।वरना दुनिया में एक से बढ़कर एक कलाकार हैं पर वह उसे दायरे तक पहुंच नहीं पाते है। मुकेश तिवारी जी एनएसडी में आशुतोष राणा के साथ ट्रेनिंग ले रहे थे यह उनका संघर्ष त्याग और दूरदर्शिता थी कि जिस समय लोग इंजीनियर, डॉक्टर ,वकील, बाबू या खिलाड़ी बनने के लिए अपने स्वप्न तैयार करते थे ऐसे समय ये छोटे शहर के लोग महान एक्टर बनने के लिए स्वयं को एनएसडी में तरास रहे थे ।जबकि वास्तविकता में यह पैदाइशी कलाकार रहे है। इनके द्वारा रामलीला और लोकल नाटक में किया जा रहे मंचन से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि यह इसी एक्टिंग कार्य के लिए ही पैदा हुए हैं । लिहाजा सबसे महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना चाहेंगे कि इतनी बड़ी हिट फिल्म देने के बाद भी अगर मुकेश तिवारी काम के मोहताज रहे, लोग उन्हें फिल्म नहीं दे रहे थे तब उन्होंने ऐसा क्या किया जो हमारे लिए एक संदेश होगा ?
चाहे आप कितने भी बड़े तीस मार खान क्यों ना हो अगर आपको अपने स्वयं के बारे में लोगों को जताना ,बताना और दिखाना नहीं आता या सीधे शब्दों में मार्केटिंग करना नहीं आता तो आप लाखों के व्यक्ति होकर भी खाक हो ।अर्थात बिना मरे स्वर्ग नहीं दिखता ।आपको अपनी वजन और अपनी डोली स्वयं में उठानी होगी कोई कहार आपको सहारा नहीं देगा।

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