जैसा का वीडियो को टाइटल है मदन साहब ने यह लिखा है कि पैसा मरने के बाद भी साथ जाता है। बहुत आकर्षक था ।
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समय कम रहने के बाद भी पूरा वीडियो देखना पड़ा कि आखिर किस स्थान पर वह इस डायलॉग को जस्टिफाई कर पा रहे हैं ?उन्होंने केवल इस बात को ही जोर देकर बताया कि पैसा आपकी आवश्यकताओं की पूर्ति मृत्यु पर्यंत तक करता है और इसलिए लोग अपने लाचारी से बचने के लिए अच्छा जीवन जीने के लिए 60 वर्ष की उम्र के बाद जब वह काम से रिटायर हो जाते हैं ।तब भी लगातार अपने पेंशन के साथ-साथ कुछ और अतिरिक्त आय के लिए प्रयासरत होते हैं ।अपनी शक्ति के अनुसार कुछ लोग इसमें थक जाते हैं तो कुछ लोगों के पास स्किल नहीं होता। इसलिए वे केवल यह बोलकर चुप हो जाते हैं कि अब मैं संतुष्ट हूं अब मैं कुछ नहीं करना चाहता ,पर वास्तविकता यही है कि जिस प्रकार कुएं में पानी न हो या उसमें पानी के झीर के स्रोत न हो तो वह कुआं कबाड़ हो जाता है। लोग उसमें कचरा, पत्थर और खराब चीज फेंक कर से पाटने लग जाते हैं। इसी प्रकार आदमी का जीवन यदि बिना पानी (इज्जत, पैसा, चमक)के हो तो वह निरमूल हो जाता है किसी के काम का नहीं रह जाता है। इसलिए लोग पैसे बचा कर रखते हैं मरते दम तक कि उसे पैसे की लोभ और लालच में ही कोई उनका वारिस या उसे चाहने वाला कम से कम उसकी अर्थी उठने तक सेवा कर सके ।उसके लाश को चील कौवे ना नोच पाए और कम से कम वह मरने के बाद सद्गति को प्राप्त हो सके। यह बात अलग है कि उसके नसीब में मृत्यु कैसे मिलती है क्या वह अनजाने जगह मरता है कि अपने लोगों के बीच मरता है ।अच्छा यह है कि वह अपने पैसे की दम पर दुनिया को दिखा सकता है की जिया तो शान से और मरा तो शान से ।हम देखते हैं कि हम में से कई लोग श्मशान घाट में, मंदिरों में ,कुआं बावड़ी में या कई सार्वजनिक स्थानों में ऐसे ऐसे दान पुण्य करते हैं और अपना उसमें नाम खुदवा देते हैं कि लोग उन्हें जाने और उनके नाम की स्मृति हमेशा सबके जेहन में बना रहे। यही वह सम्मान रूपी पैसा है जो मरने के बाद भी लोगों के नाम पर बनकर अमर हो जाता है इसलिए लोग कहते हैं खाया पिया अंग लगेगा दान पुण्य संग चलेगा और बाकी जो कुछ बच गया उस पर जंग लगेगा।
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