
आज ग्वालियर प्रवास के समय अपनी सीट पर बैठने के पहले नीचे बैठने वाले सहयात्री की एक उनकी फोन पर चर्चा करते हुए उनकी व्यंग्योक्ति सुना। कुछ विनोद सा महसूस हुआ उसकी बात पर की 70 साल तक रोना रोते हुए चचा पर फेलियर को डाल सकते हैं जैसी बात ने मुझे आकृष्ट किया कि मैं उनसे कुछ गुफ्तगू करूं।
बहुत आगे बढ़ते बढ़ते कुछ समझ में आएगी चर्चा बहुत आगे बढ़ते बढ़ते कुछ समझ में आई कि महोदय एक प्रसिद्ध रंग कर्मी और नाट्य निर्देशक है। उन्होंने अपने बारे में बताया की वे 2020-2023 के दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के एस.एन. स्कूल के थिएटर आर्ट्स विभाग के स्नातक हैं। वे सर्वश्रेष्ठ निर्देशक अखिलेश सिंह ठाकुर ने महिंद्रा एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स (META) 2025 में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार से नवाजे गए है । जबलपुर के निवासी हैं यह बहुत गौरव की बात थी जब बातों बातों में हमारी परिचय आगे बढ़ी तो यह जानकर और भी प्रसन्नता हुई एमपीपीटीसीएल के प्रसिद्ध निनाद प्रोग्राम में मंचन किए गए लघु हास्य नाटिका के निर्देशक थे। ताज पर बाज़ नाटक को आज की ऊर्जा की आवश्यकता और उसके लिए 132केवी उपकेंद्र के निर्माण के लिए होने वाली कठिनाइयों के संबंध में इस नाटक द्वारा संदेश प्रदान किया जाना था कि एमपीपीटीसीएल द्वारा शासन के अन्य विभाग से बेहतर परफॉर्मेंस किया जाता है। अभिनय में हास्य का पुट डालने के लिए शहंशाह के मुगलकालीन युग में इन व्यवस्थाओं को लेकर यह महसूस कराया गया की अगर शहंशाह आज होते तो इस व्यवस्था के आगे वे भी कैसे घुटने टेक देते । कार्य को निश्चित अवधि में से पूरा करने से पहले उन्हें दो बार और जन्म लेना पड़ता तब जाकर वे ताजमहल में बेगम मुमताज को AC की ठंडी हवा खिला पाते।सरकारी खजाने का मुंह खोलने के बाद भी कितने प्रकार के हर्डल इस युग में आते हैं, उनसे शहंशाह जहांपनाह अनभिज्ञ थे। जब शहंशाह की हालत यह है तब मामूली जनता की हालत क्या होगी इसका चित्रण बखूबी करने का प्रयास किया गया है। और अंत तक अपने इस ख्वाब को ख्वाब ही रहने देने के लिए मजबूर रहे। नाटक में सभी कलाकारों ने अपने रोज के महत्वपूर्ण अपसराना और जिम्मेदाराना पद को ग्रहण करने के बाद भी अपने-अपने पात्रों को पूरा जिया है। डायलॉग में कहीं-कहीं एमपीपीटीसीएल के व्यथा और संबंधित अधिकारियों की कारगुजारियों आदि पर फिल्मी स्टाइल में पात्रों को ठूसने का प्रयास किया गया था जो पुराने दिनों की फिल्मी किरदारों की याद दिलाता है और उनके प्रसिद्ध डायलॉग के द्वारा उन पात्रों को जीवित कराता है। सभी पात्रों ने अपने-अपने किरदार के साथ न्याय किया है किंतु कही कही चेहरे के एक्सप्रेशन और नाटक में चली आ रही एक लयता को जोड़ने में लाइट इफेक्ट ने अपना अच्छा कार्य किया है अन्यथा नाटक में कमी झलक सकती थी।
आगे श्री ठाकुर जी ने बताया कि समय, कलाकारों के लिए उनके डेट और बहुत सारी चुनौती के बाद भी नाटक का मंचन होने के तीन दिवस पूर्व ही तरंग ऑडिटोरियम में सारी तैयारी यह पूरी जिम्मेदारी और रिहर्सल होशियारी के साथ पूर्ण कर ली गई थी तब जाकर 30 मिनट में इस नाटक का मंचन बखूबी भी हो सका।श्री ठाकुर साहब द्वारा बताया गया कि कार्य करते समय उन्हें इन प्रतिभाओं को तराशने में बहुत प्रयत्न करना पड़ा था।
रंग गर्मियों को अपने करियर के रूप में अपने के लिए कलाकारों को बहुत संघर्ष करना होता है जिसमें बहुत कम लोग बड़े मुकाम तक पहुंच पाते हैं पर अगर आपने प्रतिभा है तो आप खुशबू की तरह छुपाए नहीं छुप सकते। जबलपुर के गौरव और प्रतिभा संपन्न श्री अखिलेश सिंह ठाकुर के मार्गदर्शन की हम सराहना करते हुए उन्हें 10 में से आठ नंबर देने को बाध्य हैं।
निष्कर्ष
रोज के ऊबने वाले और व्यस्त रहने वाले कार्यक्रम के बाद इस प्रकार की गतिविधियां लोगों को और जीवंत, तरो ताजा रखती है और उनके प्रतिभा का उद्धव कराती है। प्रबंधन के अग्रज श्री आदरणीय सुनील तिवारी सर और उनकी टीम को बहुत-बहुत साधुवाद है।
इस लघु नाटिका को पूरा देखने के लिए लिंक
में जा कर के 03:17 मिनट से आगे 30 मिनिट तक देखी जा सकता है।