ए पुलिस ..दुनियाँ आपकी एक गलती का इंतजार कर रही है .....रक्षकों ..भक्षक ना बनो

t4unews :जबलपुर,लॉक डाउन के बीच गोराबाजार पुलिस का एक अमानवीय चेहरा सामने आया है। गोराबाजार थाना अंतर्गत तिलहरी में रहने वाले किसान बंशी कुशवाहा जो कि अपने खेत में गाय को चारा डालने के लिए गया था, इस कदर उसके साथ मारपीट की जैसे पुलिस कि कोई पुरानी रंजिश रही हो । उसकी उपचार के दौरान मौत हो गई। मृतक किसान की मौत के बाद परिजनों ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने मृतक किसान बंशी कुशवाहा के साथ पुलिस ने बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद उसे बेहोशी की हालत में छोड़कर चले गए थे। लगता है अस्पताल में बीते 3 दिनों तक जिंदगी से संघर्ष करते कोरोना बीमारी के बजाय कोरोना से बचाने के लिऐ उसे मार डाला गया । मरने से पहले पीड़ित ने उन पुलिस वालों के नाम भी बताये जिन्होने उस पर खूब डंडे बरसाए थे । इसका मतलब पुलिस मृतक को अच्छी तरह जानती थी । परिजन दोषी पुलिसकर्मियों पर सख्तसे सख्त कार्रवाई कर मामला दर्ज करने की मांग कर रहे हैं। पुलिस अधिकारियो ने चारों पुलिस कर्मी दोषियों को लाइन अटेच किया है ।
दूसरी घटना में
ग्राम पंचायत उतरना में आज बच्चे गेहूँ उतार रहे थे तभी थाना मूसाझाग का काले सिपाही आया और उसने बच्चों को गाली देना प्रारंभ कर दिया मना करने पर उसने डंडा चला दिया और थाने से फोर्स बुला के बच्चों की बहुत पिटाई लगाई जिससे बव्चे आहत हुये ।
तीसरी घटना
पालघर महाराष्ट्र में खाकी पर भरोसे की हत्या?
भीड़ लाठी से साधु की पिटाई करती रही और और मौके पर पुलिसवाले तमाशबीन बने रहे. साधुओं की लिंचिंग में अब पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं.
सवाल नंबर 1
पालघर में संतों की हत्या की 'साजिश' किसने रची ?
सवाल नंबर 2
पुलिस ने संतों को भीड़ से क्यों नहीं बचाया ?
सवाल नंबर 3
संतों को बचाने के लिए हवाई फायर क्यों नहीं ?
सवाल नंबर 4
हत्या के वक्त मौके पर कितने पुलिसकर्मी थे ?
सवाल नंबर 5
लॉकडाउन में 500 लोगों की भीड़ कैसे जमा हुई ?
कहते हैं मानव अपने कर्मो से दानव बन सकता है भगवान बन सकता है । कहने का मतलब यह है कि आखिर वर्दी के अंदर भी एक मानव हो सकता है परंतु मानव यदि मानव ही रहे तो यहां तक तो बात ठीक लगती है परंतु कभी-कभी मानव अपनी पराकाष्ठा से बढ़कर अच्छे काम करने लग जाता है तो वह भगवान के रूप में लोगों को नजर आने लगता है । और उल्टा यदि इसके मानव के रूप को छोड़कर यदि कभी वीभत्स दानव या जानवरों की भांति व्यवहार करें तो वह एक दाग धब्बा बन जाता है मानवता के लिऐ । हम देखते हैं कि कभी वर्दी अपनी हद से बढ़ कर हमदर्दी वाला काम भी करती है तो उसके लिए वर्दी नहीं हमदर्दी जैसा नारा उत्तम लगता है । और वह हमारे लिए एक आदर्श पात्र बन जाता है परंतु कभी-कभी जंगल के जंगली भैंसे की तरह भी क्रुद्ध या मतवाला हाथी की तरह भी काम करता है तो ऐसे समय उस किसान के उजड़े हुए फसल जो वह मेहनत से बनाया हुआ है उसको रोदने वाले हाथी या रोशड या नीलगाय के रूप में दिखता है । तब वहां केवल आक्रोश पनपने लगता है कि यह कैसा स्वरूप है पुलिस का जो हमारे लिए रक्षक बन कर हमारी सेवा के लिए रत है उसे हमारी सेवक बन कर उपस्थित रहना होना चाहिए , वह हमारा भक्षक का काम कैसे करना शुरू कर देते हैं ? इस पर प्रश्नचिन्ह लगना शुरू हो जाता है कि ये मानव है या दानव जैसे वर्दी वाले गुंडे है । वर्तमान में घटित हो रहा पुलिस के स्वरूप जिसमें वह लोगों को बर्बरता से पीट रही हो या अनावश्यक सजा के रूप में जेलर जैसे लोगों को कठोर रूप से दंड देते हुए दिख रही है बहुत अच्छा नहीं है । लोग इस प्रकार कि सजा या व्यवहार के हकदार है , जो बलवा, हिंसा , पत्थरबाजी , मारपीट या अन्य प्रकार की समाज विरोधी मॉब लिचिन्ग गतिविधि करते हैं उनके साथ तो बर्बरता एक बार सिर्फ जरूर अच्छी लगती है पर जो राही हो , मासूम है या जो कुछ इस प्रकार की श्रेणी में है उनके ऊपर ज्यादा बर्बरता दिखाना कायरता है । जैसे बच्चे हुए बुजुर्ग हुए किसान हुए इनके ऊपर बिना धर्म' जाति, मजहब दिखाए अगर इस प्रकार का बर्बर तरीके से पेश आएंगे , ऐसा स्वरूप दिखायेन्गे जिसमें लोगों की जान तक चली जाए तो यह निंदनीय कृत्य हो सकता है । वर्दी पर दाग हमेशा लगता रहा है जब वह किसी अबला की इज्जत पर हाथ डाले किसी सामान्य नागरिक के इतनी बर्बरता से कुटाई पिटाई ठुकाई कर दें जिससे वह मौत के घाट उतार जाए या अपने सामने हिंसक हो रही भीड़ को रोकना छोड़ करके स्वयं भाग जाए और पालघर जैसे कांड हो जाए। यह सब चीजें पुलिस की अकर्मण्यता या पुलिस की मूर्खता कहे या अमानवता कहे उनकी अक्ल बंदी को प्रदर्शित करती है । देश में हो रहे इस प्रकार के विभिन्न प्रकार के अत्याचार और अप्रत्याशित घटनाओं के ऊपर अगर वर्दी पर दाग बार बार लगने लगे रक्षक ही भक्षक बनने लगे या बाड़ ही खेत को खाने लगे तो ऐसे में क्या कुछ कहा जाए? कि आज के समय पुलिस को क्या फिर से ट्रेनिंग की आवश्यकता है कि वह किस विवेक से कार्य करना है और कहां कैसे कार्य करना है ? यह उसके मातहत कैसे काम कर रहे हैं पुलिस के शीर्ष स्तर के अधिकारी क्या कर रहे हैं? क्या वह इसकी जिम्मेदारी लेते हैं क्या वह इसकी हरजाईयां , भरपाई करेंगे ? जनता को व्यर्थ की राजनीति में ना घसीटते हुए सही ढंग से व्यवस्थापन और सही ढंग से प्रशासन दे सके । जबलपुर की गोरा बाजार कि तिलवाड़ा के पास की घटना भी इसी प्रकार काफी रुदन, क्रंदन युक्त है कि अगर किसी किसान की इतनी बेरहमी से पिटाई हो जाए कि वह दम तोड़ दें । माना जा सकता है कि किसान ने यदि उज्जडता या उद्दंडता दिखाई होगी, सहयोग नहीं किया होगा तो इसका मतलब यह नहीं कि इतनी बर्बरता से उसके साथ मारपीट कर दी जाए कि किसान की दो-तीन दिन बाद मौत हो जाए या अंग भंग हो जाए । यह निहायत ही निंदनीय एवं चिंतनीय प्रश्न है । इस प्रकार के कृत्य पर पुलिस लगाम लगाएं अन्यथा जब कभी पुलिस के ऊपर लोग पलट कर बर्बर होकर के प्रहार या दंड देना चाहेंगे तब जनता के मुंह से उनके लिए रहम, दया , दुआ भी नहीं निकले। इन वर्दी धारियों की भी जब तक समाज रक्षा नहीं करेगा जब तक इनमें न्याय करने का चेतना या ज्ञान नहीं होगा । यह कैसे संभव होगा जब समाज में कानून व्यवस्था नाम की चीज नहीं होगी और समूचा समाज देश में जंगलराज हो जाएगा मानवाधिकार ही नही होगा , तो फिर कौन किसकी रक्षा कर पाएगा ?
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