किसान का ₹3 किलो की गन्ना की गंडेली (ताजे गलूर, गंडेली) 150 रुपये प्रति किलो !
t4unews: हमारे संवाददाता की विशेष खोज पड़ताल और मार्केट सर्वे के बाद इस फोटो को देखकर हैरत में पड़ जाना स्वाभाविक है। गन्ने के छिले हुए छोटे पीस यानि गलूर (गंडेली) कई बार ठेलियों पर बिकते देखे, लेकिन इतनी खूबसूरत पेकिंग और अंग्रेजी नाम के साथ पहली बार देखने को मिले। ये कोशिश जिसने भी की, अच्छा प्रयास है। इसकी डिटेल बहुत खूबसूरत हैं।
वजन 166 ग्राम और कीमत 24 रुपये 75 पैसे। और समझना चाहें तो इन गलूरों (गंडेलियों) का भाव 150 रुपये किलो है। इनके ताजे होने का दावा भी किया जा रहा है। हालांकि, छिलने के बाद पॉलीथिन में पैक होने के बाद ये कितने दिन ताजा रहते हैं, ये सोचने की बात है।
अब, असली बात पर आइये। किसान को गन्ने का भाव तीन रुपये किलो मिल रहा है और उपभोग करने वाले तक ये 150 रुपये में पहुंच रहा है। ये चमत्कार है। इसे बाजार की भाषा में वैल्यू एडिशन कहते हैं। गन्ने के मामले में ये वैल्यू एडीशन 50 गुना कीमत पर हुआ है। जब ये गलूर शहरों में 20 रुपये बिकते थे, कीमत के लिहाज से तब भी चुभते थे। हालांकि, तब बेचने वाला भी कोई ठेली-रेहड़ी वाला ‘अपना सा दिखता’ गरीब आदमी होता था, लेकिन अब ये उत्पाद संगठित लोगों के हाथ में पहुंचता दिख रहा है। इसीलिए 3 रुपये से बढ़कर 150 रुपये हो गया है। जबकि, गन्ने को छीलने, उसके गलूर बनाने और पैकिंग आदि में प्रति किलो 10 रुपये से ज्यादा का खर्च नहीं होगा।
ये बात केवल गन्ने तक सीमित नहीं है। कुछ दिन पहले शक्तिभोग कंपनी का दलिया खरीदा तो उसका भाव भी 80 रुपये किलो से ज्यादा था। जबकि, किसान से 17-18 रुपये किलो गेंहू खरीदा गया था। इस्तेमाल करने वाले तक ये भी चार गुना कीमत से अधिक में पहुँच रहा है। यही स्थिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा में पैदा होने वाली बासमती की है। इस बार किसान को बमुश्किल 30-32 रु. किलो का भाव मिला और आम आदमी को इस चावल के लिए 100-125 रुपये किलो तक चुकाने पड़े। ये बड़ा ही गंभीर मामला है।
हालात को समझने के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। किसी गांव के संदर्भ में देख लीजिए। वहां पैदा करने वाले को जो कीमत मिल रही है, वही सामान अलग-अलग तरह की पैकिंग में उसी गांव की दुकानों पर कई गुना कीमत पर बिक रहा है। इस बार दलाली करने और खाने वाला स्थानीय दुकानदार नहीं है। ये अंग्रेज़ी-दाँ बड़े खिलाड़ी हैं। एक बार फिर इस फोटो को देख लीजिए और गलूर (गंडेलियों) या sugarcane pieces की 150 रु. किलो कीमत का जश्न मनाइये।
लेखक श्री विवेक अरोड़ा ग्रामीण आवास फाउंडेशन के सीईओ हैं।

1. किसानों की आय दोगुनी 2022 तक कैसे हो सकेगी?
जब तक किसान को कौन सी फसल कब और कितनी समय पर कितनी मात्रा में उगाना है यह बात ज्ञात नहीं होगी उसकी गरीबी कोई दूर नहीं कर सकता। यह बात सर्वविदित है कि जिस समय अच्छी सब्जी और फसलों की मांग होती है उस समय अगर उसका उत्पादन बाजार तथा उपभोक्ता का नहीं पहुंच पाता तो उसका खामियाजा उसे भोगना पड़ता है ।सप्लाई चैन और एंड कस्टमर को यदि किसान पहचानने लगा तो उसे उसकी आमदनी से कोई नहीं वंचित कर सकता है।