हंगामा क्यों है बरपा, किसान बिल को ज्वलंत क्यों बना रहे हैं?
t4unews: नीति कथा में वर्णित एक सकरी पटरी पर दो बकरों की आपस में नदी को पार करने की जद्दोजहद में एक बकरे के बैठ जाने और दूसरी बकरे की उसके ऊपर चल कर नदी पार कर लेने की उक्ति से सरकार को फैसला लेते हुए किसानों की जारी किए गए इस बिल को रद्द कर देनी चाहिए। इसमें सरकार का ही बड़प्पन सिद्ध होगा।क्योंकि अगर बच्चे की तरक्की होगी तो उसमें उसके पिता की तरह की ही मानी जाती है।
किसान को अगर यह कानून अच्छा नहीं लग रहा है या वह किसी बहकावे में आकर या राजनीतिक भावना से प्रेरित होकर के इस निर्णय का विरोध करता है तो इसमें सरकार को जिद किए बिना उनकी मान लेनी चाहिए क्योंकि इस ऊहापोह में अगर पीस रही है तो जनता ,क्योंकि अंत में तो हो ना वही है जो राम रचि राखा चाहे कितनी अच्छी भी नियम कायदा और कानून बना लो लेकिन जीतना उसी को है जिसकी नियत और जिसकी मेहनत में दम है।
सभी जानते हैं कि मेहनत करना केवल किसान के बस की ही बात है ।बाकी बातें चलाना और उपदेश देना तथा कई प्रकार के रीति नीति बनाकर के लोगों को रिझाने का कार्य करना राजनीतिज्ञों और अफसरशाही का काम है ।वास्तविक अन्नदाता या देश का प्रहरी तो किसान और वह देश की सीमाओं पर पहरा देते हुए हमारा सेनानी है अतः में इनकी बातों को गंभीरता से समझना चाहिए ।यह अगर अदूरदर्शी होकर कुछ ऐसी निर्णय पर आमादा है जिससे किसी का भला नहीं हो पाने वाला तो पहले जैसे चलती हुई नीति को सही तरीके से कानून बनाते हुए किसान एवं देश के हित में सरकार को फैसला लेना चाहिए बजाय अपनी हठधर्मिता या तानाशाही को प्रदर्शित करते हुए कि हमने जो फैसला लिया है वही सर्वोत्कृष्ट है ।कई बार ऐसा भी होता है कि छोटे बच्चे के द्वारा बताई गई बातों से ही बड़ी से बड़ी समस्या का हल हो जाता है। ऐसा विचार करते हुए यदि शासन इस पर पुनः विचार करते हुए पास किए गए बिल्कुल करते हुए नया बिल ड्राफ्ट करती है तो इसमें सब का ही फायदा है।
किसानों की समस्या और देश की उन्नति हेतु श्री नितिन गडकरी एवं अन्ना हजारे के द्वारा दिए गए वक्तव्य की लिंक भी जरूर देखें

1. प्रश्न :१-क्या किसान आंदोलन राजनीति से प्रेरित है?
किसानों के आंदोलन में संपन्न और राजनीति की किसान ज्यादा दिखते हैं जो हरियाणा और पंजाब की क्षेत्र से आ रहे हैं ऐसे में लगता है कि वह वास्तविक किसानों की संख्या कम और संपन्न तथा राजनीतिक किसानों की संख्या ज्यादा है।
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2. प्रश्न :२-क्या किसानों को धरना स्थल पर इस तरह खीर पुरी पनीर हलवा खाते देख कर ऐसा नहीं लगता किया धरना कम आनंद उत्सव ज्यादा है।
यह वास्तविक बात है कि गरीब किसान को इस प्रकार से आंदोलन करने के लिए इतने अत्यधिक सुविधा संपन्न तरीके से कार्य को अंजाम देने हेतु कोई बाहरी शक्तियां और राजनीतिक विपक्ष की पार्टी फंडिंग कर रही है।क्योंकि अनशन के स्थान को संपूर्ण मेले यह प्रदर्शनी की तरह सजा दिया गया है सुविधा संपन्न कर दिया गया है जिससे यह प्रतीत होता है कि किसान अपनी पूरी क्षमता के साथ इस प्रकार के आयोजन में हिस्सा ले रहे हैं जैसे कि उन्हें पूर्वानुमान था कि उनके यह लड़ाई महीनों चलेगी।
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3. प्रश्न 3: क्या इस प्रकार किसानों को आनंद उत्सव का लाभ उठाते देखकर देश की जनता किसानों के पक्ष में बात करने को सहमत होंगी?
किसानों को भारी ठंड और विपरीत मौसम में रोड पर आशियाना ट्रैक्टर के अंदर बन्कर नुमा आशियाना बनाकर समय गुजारते हुये देखते हुए सबको सहानुभूति है परंतु अगर वह इस बात को बताना चाहेंगे कि उन्हें यहां किसी बात की कमी नहीं है और पनीर खीर पूरी या अन्य प्रकार के पकवान तथा सुविधा संपन्नता को प्रदर्शित करते हैं वह अपनी कमजोर पक्ष को उजागर कर रहे हैं ऐसा करने से देश में अन्य दाताओं के प्रति लोगों का आक्रोश बढ़ जाएगा और यह संदेश जाएगा कि इस प्रकार वो जनता को केवल हैरान परेशान कर रहे हैं अगर उन्हें किसी बात का गम या परेशानी है तो उन्हें अपना पक्ष तपस्या पूर्वक सत्याग्रह करते हुए दिखाना चाहिए।किसानों को फंडिंग कर रहे हैं आकाओं को इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी उन पर भी सीएजी की गाज गिर सकती है।