हम फिर उलझ गए उन बातों पर कि मैं महान ,या तू महान या वो महान
हम फिर उलझ गए उन बातों पर कि मैं महान ,या तू महान या वो महान .......
किसान अन्नदाता नहीं है बात सही है ।किसान स्वयं को विगत कई वर्षों से स्वयं को 45 लाख करोड़ के नुकसान में मानता है कि वह जो उत्पन्न करता है वह उसे एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर नहीं बेच पाने के कारण कई लाख करोड़ो के नुकसान में है और यह मजबूरी भी है उसकी जो चीज उगाई जाती है जैसे सब्जियां जैसे अन्य कोई भी वह सामग्री जो इस जीवन के लिए आवश्यक है भंडारण नहीं कर पाता ।इसलिए औने पौने दाम में ,मुफ्त में या मजबूरी में अपने काम को निकालने के वास्ते कम दाम में बेचना पड़ता है उसे ऐसी जगहों पर जहां उसकी लागत कम भी नहीं निकल पाता तो मजबूरी में क्या करें? क्योंकि चीजें सड़ने के बाद लाभकारी ना होकर के हानिकारक हो जाती है ।इसलिए लोग जीवन के समाप्त होने के बाद तत्काल उसे या तो दफना देते हैं या जला देते हैं ।स्वयं किसान के साथ भी यही मजबूरी है कि वह फसलें तो प्रचुर मात्रा में उगा लेता है परंतु उसकी मार्केटिंग और उसका विक्रय लाभकारी ढंग से वह नहीं कर पाता। आने वाले समय चक्र के आधार पर प्रत्येक 30 दिन से 90 दिन के भीतर में देने वाली कुदरत और प्रकृति उसे एक बीज के बदले 70 गुना बीज पैदा करके देने की क्षमता रखती है वहां वह अपनी संकीर्ण मानसिकता को छोड़कर या तो कम से कम दर पर या शासन को , बिचौलियों को जरूरतमंदों को या अपनी मौका परस्ती के आधार पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होता है ।यह बात सही है कि उसके द्वारा गाए गए फसलों को प्रोसेसिंग करने के लिए उद्योग चाहिए और उद्योगों से सब को नौकरी , रोजगार मिलती है ।जिससे यह जीवन का चक्र चलता है। इसलिए अकेला उसे अन्नदाता या अकेला उद्योग में काम करने वाले कर्मचारियों को करदाता मानना कहीं से श्रेयस्कर नहीं है।
पर यह बात सही है कि सब का मिलाजुला रूप ही इस जीवन में लोगों के लिए भगवान की एक कृति या स्वरुप बनकर उपलब्ध है। इसलिए किसी को कमतर आंकना सही नहीं है ।यहां कृषि आंदोलन में अन्नदाता शब्द किसानों को अनाज प्रदाता कहने का या उन्हें बहुत ज्यादा महान बनाने का जो प्रयास किया गया है वह सही भी है, क्योंकि जिस प्रकार यदि हम अपने माता-पिता को कहें कि तुमने हमें जन्म इसलिए दिया हमें दूध इसलिए पिलाया ताकि हम आपके बुढ़ापे का सहारा बन सके, हम तुम्हारे लिए बुढ़ापे में सेवा कर सकें ।यहां उनका स्वार्थ हो सकता है पर आरंभिक स्तर पर जो अपने सारे सुख सुविधाओं को भूल कर प्रकृति के विरुद्ध लड़ने का महान कार्य करने के लिए आगे आता है वह वास्तव में दाता ही कहलाता है ।वह भगवान का स्वरूप होता है ।उसके अंदर भगवान की सारी शक्तियां और वह सारे गुण भगवान स्वयं प्रदान करते हैं कि जाओ इस प्रकृति के सृजन में इस प्रकृति के समर्थन में इस दुनिया को पालने के लिए मेरे इस शक्ति और स्वरूप का धारण करो ।
वर्तमान में कृषि बिल के विरुद्ध उपज रहे वाद विवाद और गुटबाजी के संदर्भ में उसका समाधान सिर्फ यही है कि अगर बालहट में बालक किसी ऐसी चीज के लिए रुदन क्रंदन कर रहा हो जिसमें उसके दूर तक का लाभ नहीं होता हो, परंतु पिता को मालूम है कि उसका तात्कालिक समाधान यही है कि उसके उस बाल हट को पूरा कर दिया जाए। यहां सरकार को यह भूमिका अदा करनी चाहिए और अपनी हट और अपनी तानाशाही को छोड़कर यदि देश हित में किसान हित में और स्वयं की इज्जत के हित में यदि कोई ऐसा निर्णय लें जिसमें लोगों को लगे कि सरकार झुक गई है तो इसमें भी कोई गलती या हास्य विनोद नहीं होगा ।
क्योंकि झुकता वही होता है जिसमें जान होती है वरना अकड़ना तो मुर्दों की पहचान होती है।
उपरोक्त कथन निम्नलिखित सोशल मीडिया में पूछे गए प्रश्न के एवज में दिया गया है।
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=5301924943151755&id=100000029046517
किसान अन्दोलन ?
लोग कह रहे हैं कि आज अगर रोटी खाई है तो किसानों का धन्यवाद कहिये।
...बिल्कुल, धन्यवाद !!!
लेकिन मेरा धन्यवाद साथ में टाटा, रिलायंस, इन्फोसिस, महिन्द्रा, टीवीएस जुपिटर, हाँडा एक्टिवा, बजाज, ओरियन्ट, ऊषा, क्राम्पटन, मारुति सुजुकी, हीरो, एवरेडी, ले लैन्ड, अमूल, मदर डेरी, पराग, एम डी एच मसाले, गोल्डी, बीकानेरी भुजिया, हल्दीराम और अन्य हजारों- लाखों उद्यमियों को भी कि जिन्होंने हमारे लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न किये जिससे हम किसानों से उनकी फसल खरीद पा रहे हैं और रोटी खा पा रहे हैं।
वरना, अभी तक...कम से कम... मुझॆ तो किसी ने मुफ़्त में गेँहू की बोरियाँ भिजवाई नहीं है।
नौकरी ना होती तो मुफ़्त में किसको धन्यवाद देता भाई?
किसी को यह पोस्ट अच्छी न लगे तो मेरे पते पर मुफ्त में गेँहू की बोरियाँ और साल भर की सब्जियाँ भिजवा दे। पोस्ट हटा दी जायेगी।
और हाँ, किसान अन्नदाता नहीं हॆ - सिर्फ अन्न उत्पादक हॆ। अन्न दाता सिर्फ एक परमात्मा हॆ, और तुम कभी परमात्मा की जगह नहीं ले सकते।
अगर किसान खुद को अन्न दाता कहते हो तो हम भी "कर दाता" है, जिसके कारण तुम्हें मुफ्त में बिजली, पानी, कर्जमाफी व सब्सिडी की सुविधाएं मिल रही हैं।
प्रश्न कर्ता श्री विवेक चंद्रा द्वारा सोशल मीडिया
