ओशो कह रहे हैं कि लोग यानी गांव के लोग …जो आपके अन्यन्न मित्र रिश्तेदार पड़ोसी ना होकर बाकी अन्य लोग हैं जो गांव के ,शहर के, आबादी के और आपके ऊपर नजर रख रहे हैं आपकी छिपे प्रतिद्वंदी वह लोग जो आपकी हर गतिविधि तरक्की और खुशमिजाजी से अवगत होते रहते हैं जब आपके ऊपर दुख का अप्रिय घटना का नुकसान का अथवा अपमान का घटना घटित होता है तब लोगों का आपकी प्रति सहानुभूति पूर्वक नजरिया कम होता है और आपके पीड़ा, डंस , घाव आदि कैसे लगी ,कैसे हुई ,क्या हुई ,फुलौरी बिन चटनी कैसे बनी ? जानने के लिए ,अपनी उत्कंठा दिखाने के लिए, जालिम लोशन जैसा मलहम लगाने के लिए ,आंखों में पीड़ा और दुख का काला चश्मा लगाए हुए ,अपने अंदर की आंखों में अथाह आनंद लिए जब आपका इंटरव्यू करते हैं ।तब आपको साफ-साफ पता चल जाता है कि उन्हें ऐसा कौन सा मसाला चाहिए जो बाहर जाकर बता सके की अरे वह तो फलां फलां यह कह रहा घटना होने के बाद ।इस घटना के बाद साला अच्छा निपुर गया.. बेज्जती हमेशा दूसरे की होते हुए देखना सुनना अच्छा लगता है खुद पर बात आती है तो बहुत ही पीड़ा दायक हो जाती है ।कहा भी गया है की जीवन में हर मनुष्य के द्वारा दूसरे मनुष्य के साथ व्यवहार करते समय न जाने कब कौन सी बात गलत लग जाए चुभ जाए जिसका बदला वह किस रूप में सामने वाले का अहित होता देखकर आनंदित होता है की देखा …..भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। आज उसने मेरे मन की सुन ली और उसके घर में धनिया बो दिया ।हम यह जानते हैं की समाज में प्रत्येक प्राणी अथवा संबंध को संतुष्ट नहीं किया जा सकता कुछ लोग इसलिए ही जिंदा रहते हैं सामने वाला कब शर्मिंदा हो उसे देखें और फिर अपने अपमान का बदला ले सकें ।दुनिया में अगर आपको सर उठाकर बिना ईर्ष्या के बिना किसी दुराग्रह की जिंदा रहना है तो कभी अपने दुख dukh के राज या आंसू किसी के सामने मत बहाना।उसे स्वयं पी जाना क्यों कि जब आप अपने दीनता दूसरे को दिखाते हैं तब वह आपको वास्तविक मदद करने के बजाय सौदा करने लगता है कि अगर मैं आपको इस कष्ट से बचाऊंगा तो आप मुझे इसके बदले क्या देंगे?