इतनी गहराई की बात सभी संत कहते हैं की जब चाहत खत्म हो जाए तृष्णा खत्म हो जाए ।
जब आए संतोष धन सब धन धूल सामान
गजधन गोधन बाज धन और रतन धन सब खान
रट्टू तोते की तरह कहते बोलते सभी हैं पर मनुष्य जीवन ऐसा है जो दिन रात संचय करता है। साल भर का ,कई वर्षों का और पूरे जन्म का प्लानिंग करता है ।संचय करता है फिर भी दुखी का दुखी और चिंतित रहता है ।जबकि अन्य योनि के प्राणी केवल अभी और आज की चिंता करते हैं। शेष ऊपर वाले पर छोड़ देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने जीवन को अलमस्त और फक्कड़ता से जिए और बरसात के पूर्व भी अपने घर के छप्पर को सुधारने का काम ना करें ?ओशो का तात्पर्य बुद्धत्व या ज्ञान से केवल इतना है की जिस प्रकार अपने गंतव्य को पहुंचने के लिए हम अपना रेल, हवाई जहाज, पानी जहाज आदि के द्वारा टिकट सुनिश्चित कर लेते हैं, और उसके बाद उसमें बैठकर अपने आसपास के सभी सहयात्री के साथ भाईचारे के साथ मौज मस्ती करते हुए ऊपर वाले पर सब कुछ छोड़ देते हैं कि वह उसकी यात्रा सुगम करें सुनिश्चित करें ।वह इस बात का ख्याल या चिंता नहीं करते की ड्राइवर ,कैप्टन गाड़ी सही चला रहा है अथवा नशे में तो नहीं है या वह मंजिल सही में हमें पहुंचा के रहेगा अथवा नहीं ?केवल एक निश्चितता होती है कि अगर हमारे पास टिकट बनाई हुई है तो मंजिल देर सबेर आ ही जाएगी ।कोई चिंता की बात नहीं उल्ट इसके जब हम अपने व्यक्तिगत गाड़ी से बाय रोड सफर करते हैं उसे समय हमें गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर, उसके हाव-भाव, गाड़ी में डलने वाले ईंधन, टोल टैक्स, रोड में चल रहे और अन्य लोगों की गतिविधियां, गाड़ी के टायर के बिना पंचर हुए चलने की चिन्ता और अनेक प्रकार के भय व्याप्त होते हैं ।भले ही हम अपने मर्जी के मालिक होते हैं चाहे जहां रुक कर फोटोग्राफी करते हैं, जीवन का आनंद लेते हैं, पर हमारी तृष्णा इच्छा और महाराजा सिकंदर के जैसे होने की भावना से कम नहीं होती है।
यही अंतर बड़े-बड़े संत और ओशो लोगों को बताना चाहते हैं की आस्था ,विश्वास और संतोष जीवन में बुद्धत्व को प्राप्त करने की वह संसाधन है जिसमें हम सुनिश्चितता से अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं ।और मंजिल प्राप्त होने के बाद फिर कोई दूसरी मंजिल प्राप्त करने की इच्छा तभी रहती है जब तक हमारी प्राप्त मंजिल महान ना हो। छोटी-मोटी मंजिल प्राप्त कर लेने को बुद्धत्व नहीं कहते वह तो घुमंतू बने रहने का छोटी-छोटी तृष्णा है ,इच्छा है ।वास्तव में जीवन में बुद्धत्व को प्राप्त यदि करना है तो योग्य गुरु का ज्ञान और उसके द्वारा सुझाई गई मंजिल ही बुद्धत्व का गंतव्य हो सकती है।
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